सहारे की जरुरत
सहारे की जरुरत
एक बहुत बड़ा सा घर है मेरे गांव में,
देखा है एक बूढ़े को पीपल के छांव में।
बेटे और पोते ठाटबाट का क्या कहना,
सभी लोग अपनी खुशियों में लीन हैं,
और देखो जरा उस बूढ़े के शरीर पर
धोती कुर्ता भी मिट्टी से मलिन है।
गई पास फिर और कहा मैंने बाबा से
आपकी तबीयत थोड़ी कच्ची लगती है,
ऊंची आवाज में फिर दोहराया मैंने कि
मुझे भी पीपल की छांव अच्छी लगती है।
खाना देते हुए कहा मैंने खा लेना इसे,
जब भी आपको भूख लग जाए,
आंसू आँखों में भर वो कहने लगे कि
बस ऊपर वाले का बुलावा आ जाए।
सहारा देकर अपने कंधों का मैंने,
उन्हें उनके आलिशान घर तक पहुंचाया,
मैंने कहा ख्याल रखों थोड़ा तो लोगों ने
उस बुजुर्ग एक सनकी बुड्ढा बताया।
उस दिन घर जाकर मैं सोचने लगी कि,
बाबा अपनी व्यथा आखिर किस से कहें?
दुख हुआ दूसरे दिन ये जानकर की,
बाबा अब इस दुनिया में ही नहीं रहे।
सोचो जरा बुढ़ापा है तो क्या हुआ,
यह तो हर एक जिंदगी की कहानी है,
कौन कहता है कि बचपन के बाद भी
अंत तक मिलेगी तुम्हें जवानी है।
देखा जाए तो बच्चे और बुड्ढों में
समझदारी एक हद तक ही होती है,
दोनों ही नादान हैं और दोनों को ही
किसी ना किसी सहारे की जरूरत होती है।