शाम
शाम
ए भागती शाम जरा ठहर तो सही
इंतजार है मुझे किसी का
आ जाने दे जरा उसे।
ढलती रौशनी में देख लूँ चेहरा उसका
पीली थकी धूप की आड़ में,
वह भी छुपा ले
दिन भर की थकन
और नाकामयाबी की उदासी।
कि मैं भी बहला सकूँ उसे
तेरे नाम पर लगा लांछन,
कह सकूँ दो लफ्ज़ हौसले के
छुपा सकूँ कंपन होंठों का और
उदासी आँखों की
मटमैले होते आसमान के तले।
ऐ शाम
तेरा ठिठकना बहुत जरूरी है इस समय
तेरी बुझती रौशनी पर
टिमटिमाती है जिंदगी
दो बुझते दिलों की।
