शालिनी : मेरी खुशनसीबी
शालिनी : मेरी खुशनसीबी


हाँ जानता हूँ…
बदतमीजियां की मैंने उससे बहुत,
उस पर मेरा गुस्सा भी बेफिजूल था,
उसे खोने का डर जो था मुझे,
शायद वही मेरा सबसे बड़ा कुसूर था ।
हक़ समझता था मै उस पर अपना,
दुनिया से छुपा अपना बनाना चाहता था,
दूर ना हो जाये किसी रोज मुझसे,
बस इसी बात से मैं डरता था।
याद है मुझे तिल उसकी बायीं आँख का,
जिसने मुझे चुराया था,
मरता भी क्यो न मै उस पर,
खुदा ने इतना सुंदर जो उसे बनाया था।
बाल थे उसके या रेशमी लटा थी,
ना जाने किस पानी से नहाती थी,
लिपट जाता उस पर दिल भी मेरा,
जब भी वो बालों की पोनी बना के आती थी।
मुस्कुराहट उसकी भूला न मैं अब तक,
उसके चेहरे की शान थी बढ़ाती,
मदहोश हो जाती थी वो हँसी में इतनी,
कि खुद हँसी को रोक ना पाती।
होँठ थे उसके पंखुड़ी जैसे,
मन में मेरे आग लगाते,
चूमता था जब भी मै होठों को उसके,
मेरे मन की और प्यास बढ़ा दे।
नजर नहीं हटती थी उससे मेरी,
जब वो सामने आ जाती,
आवाज में जादू था कुछ ऐसा,
भटके मेरे मन को अपने पास बुलाती।
भुला नहीं खुशबू उसके बालो की,
जो मुझे उसकी याद दिलाती है,
ढूंढने लगती है नज़रे उसी को,
जब भी वो खुशबू दूर कहीं से आती है।
जब भी नाराजगी होती थी उससे,
मेरे हाथो से अपनी कमर थमवाती,
शांत कर देती एक पल वो गुस्सा मेरा
और झट अपनी बात मनवाती।
जानती थी वो आदत मेरी के
उसके बिना मेरी सुबह नहीं होती,
कमर पकड़ता था जब भी मै उसकी,
मानो खुशियां सारी मुट्ठी में होती।
नाखून उसके कभी बढ़ न पाते,
दांतो से ही काटती थी,
मेकअप वो जरा भी न करती,
मेरे दिल को छू जाती थी।
कान की उसकी छोटी बालिया
आज भी मै पर्स में रखता हूँ,
जब भी उसकी याद सताये,
उनको देख, चूम लिया करता हूँ।
हाँ सच है…….
उसने कभी कुछ किया न ऐसा,
जिससे मुझे कुछ तकलीफ होती,
आग लग जाती थी मन में भी उसके,
अगर कोई मेरे पास भी होती।
मतलबी सा हो गया था मै भी,
उसके सिवा कोई दिखता न था,
छुये उसे कोई नजरों से भी,
ये मुझे बर्दास्त न था।
चलती थी वो नजरें झुका के,
अपनी धुन में रहती थी,
विश्वास करती थी वो मुझ पर
और अपनी हर बात सांझा करती थी।
गले में भी तिल था उसके,
तिल से उसे छेड़ता था,
एक पल भी मुझसे दूर ना होना,
ये हर रोज़ मै उसे कहता था।
नाक थी उसकी थोड़ी मोटी,
पर चेहरे में वो जचती थी,
जानती थी वो गुरुर है मेरा
और मेरे इस गुरुर से दुनिया जलती थी।
माँगा कभी कुछ न मुझसे,
अपना सब निछावर करती थी,
रूप अलग था उसके प्यार का,
मुझ पर जान छिड़कती थी।
शायद …. गुस्से में मै कहता बुरा था,
ना जाने कैसे सहती थी,
जलन होती थी मुझे उन सब से,
पास जो उसके रहती थी।
नाराजगी होती थी जब भी हम में,
वही रिश्ता बचाती थी,
जानती थी वो रिश्तों की अहमियत
और यह आदत उसे खास बनाती थी।
जिस्म की भूख न थी मुझे उसके,
बस उसकी रूह में बसना चाहता था,
किस्मत मानता था उसे मै अपनी
और इसी किस्मत का साथ मै चाहता था।
अब तक भूल मै अपनी जान ना पाया,
न जानें क्यों मुझे छोड़ गयी,
पूछता रहा गलती मै अपनी
और वो एक पल में रिश्ता तोड़ गयी।
आयी थी वो हवा के झोके जैसे,
मेरी जिंदगी सवार गयी,
हाँ….. चली गयी थी तन्हा करके
पर मुझे जीना सीखा गयी।