शादी -एक बोझ
शादी -एक बोझ
शादी एक बोझ
कर दी मेरी मर्ज़ी के खिलाफ एक
ऐसे इंसान से मेरी शादी जो
मेरी इज्ज़त नहीं करता आएं दिन मैं
कोशिश करती अच्छी पत्नी बनने के लिए
लेकिन सारी कोशिशें व्यर्थ जाती हैं
आखिर कब तक यह जिल्लत मैं सहूँ
अपने ही परिवार ने नरक में धकेल दिया और
किसी से क्या गिला करूं ना नौकरी कर
सकती ना घर से कोई व्यवसाय शुरु कर सकती
सहेलियां बुलाती मिलने के लिए तो कह दिया
जाता बोल दो तबीयत खराब है मैं मां से
कहती की आना वापस तो मां फोन रख देती है
अब एक सही अवसर की खोज की निकल
पाऊं इस बंधन में यह शादी अब मेरे लिए एक
बोझ मेरे लिए एक बोझ