जुदाई
जुदाई
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मिली थी उनसे जब नजर तो, नज़रें झुकी रह गयीं
चाहत थी जी भर के देखने की पर,शर्म से दबी रह गयी
देखना चाहा जब उनको हिम्मत करके
न वो मिले न उनकी परछाईं ही मिली
पूछा तो जमाने भर से उसके जाने के बाद
जब शक्ल और हुलिया ही न था याद तो क्या देता कोई जवाब
हम फिर भी आस लिए लौटते रहे उस गली से
जहाँ उसको देखा था कभी पहली पहली बार
बिन मिले ही हम जुदा से हो गये
न वो लौटे कभी और हम भी उस गली में जाना भूल गये।