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J P Raghuwanshi

Tragedy

3  

J P Raghuwanshi

Tragedy

गांव'...

गांव'...

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कहां गई खेत की कचरिया।

दिखावें न गांव की डगरिया।


ककड़ी और भुट्टा के गांज लगत थे।

नेवा,गढेलू खूबै फरत थे।

ढबुआ मै बैठी डुकरिया।

दिखावें न गांव की डुकरिया।


जैसे साहुन भादौ आवै।

आल्हा पढ़ै, रामान सुनावैं।

वनत थे,गूझा,पपरिया।

दिखावें न गांव की डगरिया।


मौरी तो भैया,खूबै वहत थी।

चार-चार दिन की,झिर भी लगत थी।

आ जात थी, गांव की झुरैया

दिखावें न गांव की डगरिया।


पैना भर-भर भजिया बनत थे।

गुड के रसगुल्ला अच्छे लगत थे।

कुआं पै ठाडी पनहरिया।

दिखावें न गांव की डगरिया।



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