गांव'...
गांव'...
कहां गई खेत की कचरिया।
दिखावें न गांव की डगरिया।
ककड़ी और भुट्टा के गांज लगत थे।
नेवा,गढेलू खूबै फरत थे।
ढबुआ मै बैठी डुकरिया।
दिखावें न गांव की डुकरिया।
जैसे साहुन भादौ आवै।
आल्हा पढ़ै, रामान सुनावैं।
वनत थे,गूझा,पपरिया।
दिखावें न गांव की डगरिया।
मौरी तो भैया,खूबै वहत थी।
चार-चार दिन की,झिर भी लगत थी।
आ जात थी, गांव की झुरैया
दिखावें न गांव की डगरिया।
पैना भर-भर भजिया बनत थे।
गुड के रसगुल्ला अच्छे लगत थे।
कुआं पै ठाडी पनहरिया।
दिखावें न गांव की डगरिया।
