मक्कारी
मक्कारी
मीठा बोलों और मक्कारी करो
आदत ये अच्छी नहीं
सुकून मन को दे सके जो
मोहब्बत ऐसी चलती नहीं।।
बात-बात पर ताने मारें
ये अच्छे लोगों की बात नहीं
खुद तो जलते नाकामी में
दूसरे के तरक़्क़ी की झिलती नहीं।।
वक्त पड़ने पर रंग दिखा दे
ये मित्रों की पहचान नहीं
बिन मेहनत के मिलती है जो
अच्छी भी वो खैरात नहीं।।
जिस थाली में खाना खाएं
उसमें छेद करना, अच्छी किसी की बात नहीं
ऐसे करने वाले वालों की
होती नियत साफ नहीं।।
कदर ना करता खुद की जो
ना करता विश्वास कभी
नसीहत दे उदाहरण देता
खुद्दारी उसमे होती नहीं।।