मैं टूट भी जाऊँ तो क्या...........
मैं टूट भी जाऊँ तो क्या...........
मैं टूट भी जाऊँ तो क्या तुम मुझे संभाल पाओगे
बिखरे मेरे अहसासों को सिमट के तुम लाओगे
अधमरी सी कुछ ख़्वाहिशों को प्राण फूँक के बचाओगे
बेहतरीन ज़िंदगी के मेरे कुछ लमहे हसीन सजाओगे
छेड़ के दिल-ए-साज़ का तराना मेरे लिए गाओगे
रूठी हुई खुशियों को मनाने क्या मेरे लिये आओगे
बन के मेरे प्यार की ताबीर सुहाना सपना मेरा लाओगे
तहरीर-ए-ख़ास बन के मेरे अल्फ़ाज़ों में चुपके से समाओगे
मैं टूट भी जाऊँ तो क्या अपने प्यार के वादों से मुझे बहलाओगे
काँटों की डगर सूनी पड़ी बगिया को अपने वज़ूद से महकाओगे