बंद पलकों के बीच
बंद पलकों के बीच
सोचता हूँ
तुझे नव वर्ष में क्या उपहार दूँ
हर सितारों से पूछा
हर गुजरती मोड से पूछा
हर गुजरते लम्हों से पूछा
सब चुप ! सब चुप !
चाहत है हर रोज
तेरे दामन में
एक गुलाबी प्रभात दूँ
बस नही मगर
नियति के खेल में
अंतर नही कर पाऊंगा
मधु- बिष के मेल में
सिर्फ इतनी सी आरजू
बंद पलको के बीच
मुस्कुराती हो , मुस्कुराती रहो!