"सच्चा रिश्ता"
"सच्चा रिश्ता"
रिश्तों से निकल रही आज आग है
पानी भी अब जलकर हुआ खाक है
क्या मित्र,क्या आज के रिश्तेदार हैं ?
सबमे छिपे हुए आस्तीन के नाग हैं
जिन पे भरोसा किया हद से ज्यादा,
वो ही लोग जख़्म दे रहे बेहिसाब है
रिश्तों से निकल रही आज आग है
ये रिश्ते हुए आज बहुत बेईमान है
जिंदगी में मिल रहे कैसे इंसान है
मित्र बन पीछे घोप रहे तलवार है
वो लोग मार रहे हमे आज लात है
जिन पे हमारे बरसों के अहसान है
इंसानी शक्ल में घूम रहे शैतान है
स्वार्थ खातिर कर रहे बुरे काम है
रिश्तों से निकल रही आज आग है
अपने हुए मुफ़लिसी में अनजान है
हर रिश्ता बना खतरे का निशान है
रिश्तों ने छोड़ा,मर्यादा का मैदान है
हमारे विश्वास का लोगो ने साखी,
बड़ी बेरहमी से किया क़त्लेआम है
वही लोग बन रहे आज भगवान है
जिन्होंने उजाड़े बड़े-बड़े खानदान है
रिश्तों से निकल रही आज आग है
हर रिश्ते में लगा हुआ आज दाग है
एक ही रिश्ता लगता हमे बेदाग है
जो सबका भला करता बिना बात है
वो है,मेरे प्यारे हनुमानजी का रिश्ता ,
जो मेरा क्या सबका रखते ध्यान है
उनको ही में हरपल याद करता हूं,
वो ही इस गरीब साखी की जान है
उनके बिना मेरा हर रिश्ता बेजान है
उनसे लगा रखा है,दिल सिर्फ मैंने
बाकी हर रिश्ता लगा हमे बेईमान है!