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Sarita Dikshit

Tragedy

4.8  

Sarita Dikshit

Tragedy

सब छीन लिया

सब छीन लिया

1 min
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जो भय था इस अन्तर्मन में

प्रत्यक्ष वो ऐसे आएगा

किसने सोचा था, पल भर में

मेरा सबकुछ ले जाएगा


हर कोशिश की थी बचने की

औरों को भी आगाह किया

ये है प्रचंड महामारी

सतर्क, सजग उपचार किया


दस्तक देगी मेरे दर पर

ऐसा न मैंने सोचा था

उजड़ेगा सबकुछ क्षण भर में

छल था या कोई धोखा था


वत्सों के सर से हाथ उठा

जो हस्त थे साधन सपनों के

एक पिता का साया छोड़ चला

स्वनिर्मित दुनिया अपनों के


जीवन भर साथ निभाने को

थे लिए वचन हमने मिलकर

फिर क्यों रस्ते में छोड़ चले

बिन कहे–सुने, अधर सिलकर


कुछ भी तो नहीं जताते थे

क्या होगा जीवन बाद तेरे

हर सुख देने की चाहत में

रहते थे हरदम साथ मेरे


अब सफर अकेले तय करने को

साहस मुझे जुटाना है

महसूस तुम्हें हर पल करके

जीवन का भार उठाना है


तुम न होकर भी हो हर पल

घर के इन कोने-कोने में

मुस्कान हो मेरे जीवन के

काटूँ क्यों जीवन रोने में


कर्तव्य जो बाकी छोड़ गए

अब उसको पूरा करना है

अबोध निशानी प्रेम की अब

ले साथ सफर पर चलना है।


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