साया नही था
साया नही था
ख़्वाब था कोई साया नही था
हमसफर भी साथ निभाया नही था
चल रहा था मंजिल पे अकेले ही
किसी ने भी रास्ता बताया नही था
उम्र भर किया था भरोसा जिसपे
उन्होंने कभी आजमाया नही था
टूटने के कगार पे था पर टूटा नही
अजनबी था शहर मे पराया नही था
दर्द लिखता रहा
हर रोज़ कागज़ पे
किसी ने कभी हमे
पढ़ाया नही था...!
