साथिया साथ निभाना तुम
साथिया साथ निभाना तुम
आना तुम
साथिया साथ निभाना तुम
माना राहों में अनगिन रोड़े हैं
पत्थर भी क्या हमने कम तोड़े हैं
अनजानी पगडंडी पर
हल्के ही सही
अपने निशान हमने भी छोड़े हैं
आना तुम
संग कदम कुछ चलना तुम।
जो धूल उड़ रही राहों में
कुछ आकर बस जाती है सांसों में
मिट्टी कह लो या धूल कहो
अनचाहे ही कभी कभी
कुछ चुभ सी जाती है आंखों में
आना तुम
कुछ नेह यहां बरसाना तुम।
रिश्ते जे पीछे छूट गए
कुछ रिश्ते जो हमसे रूठ गए
खट्टे मीठे पल जीते जीते
पल पल, तिल तिल कर
कितने ही दिल हैं जो टूट गए
आना तुम
इन रिश्तों को सहलाना तुम
साथिया साथ निभाना तुम।