STORYMIRROR

Dr. Anu Somayajula

Abstract

4  

Dr. Anu Somayajula

Abstract

साथिया साथ निभाना तुम

साथिया साथ निभाना तुम

1 min
257

आना तुम

साथिया साथ निभाना तुम


माना राहों में अनगिन रोड़े हैं

पत्थर भी क्या हमने कम तोड़े हैं

अनजानी पगडंडी पर

हल्के ही सही

अपने निशान हमने भी छोड़े हैं

आना तुम

संग कदम कुछ  चलना तुम।


जो धूल उड़ रही राहों में

कुछ आकर बस जाती है सांसों में

मिट्टी कह लो या धूल कहो

अनचाहे ही कभी कभी

कुछ चुभ सी जाती है आंखों में

आना तुम

कुछ नेह यहां बरसाना तुम।


रिश्ते जे पीछे छूट गए

कुछ रिश्ते जो हमसे रूठ गए

खट्टे मीठे पल जीते जीते

पल पल, तिल तिल कर

कितने ही दिल हैं जो टूट गए

आना तुम

इन रिश्तों को सहलाना तुम

साथिया साथ निभाना तुम।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract