साथ
साथ
बोल तुम्हारे रस में डूबे,
मन मोहित कर जाते हैं।
शब्द-शब्द बन गीत सुरीले,
उर अनुराग जगाते हैं।
भुजबंधन में कस लूँ तुम को,
अक्सर सोचा करता हूँ।
किंतु कहीं तुम रूठ न जाओ,
यही सोच कर डरता हूँ।
बात हृदय की मेरे अधरों,
तक आ कर रुक जाती है।
शुभे! नयन की भाषा तुम को,
कहो समझ क्या आती है?
कहो मेरा सानिध्य तुम्हें भी,
क्या आनंदित करता है?
मम नयनों का प्रणय निवेदन,
हृदय तुम्हारा पढ़ता है?
साथ तुम्हारा पाकर जग के,
कड़वे बोल भुला दूँ मैं।
हाथ थाम लो प्रिये अगर तो,
पत्थर भी पिघला दूँ मैं।
अधरों पीछे छुपे अभी तक,
मुखरित शब्द सभी कर दो।
कर स्वीकार निवेदन मेरा,
ये जीवन सार्थक कर दो।