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Meenakshi Kilawat

Classics

4.1  

Meenakshi Kilawat

Classics

सांसों को नहीं संभाल पाते

सांसों को नहीं संभाल पाते

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यह ख्वाहिशें ही तो है 

हमारे जान की दुश्मन

यह ख्वाहिशें ना हो जिंदगी में तो

बन जाएगा स्वर्ग जैसा जीवन।


अच्छा बुरा सोच सोच कर

जान को किया खत्म

ना होती यह सोच तो

छूट जाता हमारा अहमं।


सुबह शाम वही काम

ना करते मनन चिंतन

सर से पानी गुजरता जब

छोड़ ही देते हम वतन।


मुस्कुराहट आती जाती है

वह भी तो अब भूल जाते है

बैठे-बैठे जीवनका मोल गिनाकर

एहसास तो सबको दे जाते हैं।


हर चीज की जरूरत है यहां

रखना क्या चाहते हो अपने पास

और छोड़ना क्या चाहते हो 

एक वुसूल भी तो होता है खास।


हमने बहुत से पाले है शौक

वही ओढ़ते हैं वही बिछाते हैं

क्या-क्या आफत समेटते पर

सांसों को नहीं संभाल पाते हैं।


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