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PRATAP CHAUHAN

Abstract Classics Inspirational

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PRATAP CHAUHAN

Abstract Classics Inspirational

मटमैला हो गया

मटमैला हो गया

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दुनिया के रंग में रंग जाऊँ या,

अपना ही कोई रंग बनाऊँ।


मन करता है, गहरे रंग में रंग जाऊं !

कभी लगता है, फीका ही रह जाऊं।


जो माटी में मिला,

तो मटमैला हो गया।


आसमां के रंग में रंगा,

तो अलवेला हो गया।|


हंसने-हंसाने का भी एक जमाना था,

अब न जाने कहां खो गया।


कमबख्त कैसा है यह इंसान,

जो बिना नींद के सो गया।


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