मटमैला हो गया
मटमैला हो गया
दुनिया के रंग में रंग जाऊँ या,
अपना ही कोई रंग बनाऊँ।
मन करता है, गहरे रंग में रंग जाऊं !
कभी लगता है, फीका ही रह जाऊं।
जो माटी में मिला,
तो मटमैला हो गया।
आसमां के रंग में रंगा,
तो अलवेला हो गया।|
हंसने-हंसाने का भी एक जमाना था,
अब न जाने कहां खो गया।
कमबख्त कैसा है यह इंसान,
जो बिना नींद के सो गया।
