शीर्षक- अटूट अनुरक्ति
शीर्षक- अटूट अनुरक्ति
किसी के दिल मे उतरना आसान नहींं होता।
हम चाहे जिन्हे दिलो जान से, वो भी अपनाये
हमे ये जरूरी तो नहींं
प्यार मे ऐसा क्यो हो जाता है।
दिल का सुकून, चैन उनके पैगाम को देख कर आता है।
हर आहट, होठों पर कपकपाहट,
मौसम को रूमानी कर देती है।
तेरी तस्वीर अब साँसों की लय पर
थिरकती- सीने की दस्तक का साज बनती है।
सोच मे मेरी तेरा ही नाम होता है।
तुम्हारे फोन की घंटी, से दिल की धड़कनें चलती है।
इतना चाहे गे तुम्हें सोचा न था
मरू की बंजर मे ओस का अमृत मिलाया होगा
दिल की वीरान ,उदासी को नव यौवन का संचार मिलाया
तुमने, जब हौले से मेरे कानों मे कहा- पैगाम ने तेरे
मेरे गात
मे सौंधी सौरभ का वास किया
तेरे विश्वास की खुशबू ने नव वंसत का आगमन
मेरे हदय पटल पर किया।
तुम हो मेरे प्राण आधार.....
तुम शब्द मै अर्थ
तुम बिन मै व्यर्थ
मेरे प्राण प्रिय की मधुर आभा से मुझे मेरे
जीवन का आधार मिला
प्रिय तुम नहीं तो मै नहीं
गर कभी भूलना चाहोगे तो मेरा अस्तित्व तेरे बिन
हाड- माँस का पुतला रह जाएगा
प्रियवर आप के छूने से मेरा जन्म संवर जाएगा
आप हो तो मैं हूँ गर भूला दोगे।
मेरे हाड-माँस की जलती चिता के वेगों से
मेरे निश्छल प्रेम के सरोवर सी ठंडक पाओगे
तेरे दीदार को तरसती आँखों के समुद्र भी सूखने लगे।
