साम्राज्य
साम्राज्य
साम्राज्य
हरतरफ छाया
भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी का
ना बचा कोई दफ्तर विभाग
दीमक लग गया प्रशासन की जड़ों में।।
साम्राज्य लोभ-लालच का
दिलों में जमा गया जड़
भूल गये रिश्ते-नाते
खून का रंग शायद बदल गया
जिम्मेदारी परिवार समाज
देश के प्रति किसे याद रही?
साम्राज्य कायम है आतंकवाद
और उग्रवाद का
शहीद हर रोज होते सीमा पर असमय
और देश के अन्दर भी।
सींच रहें आतंक की बेल
कुछ गद्दार जयचंद देशद्रोही।
साम्राज्यवादियों की
विस्तारवाद की तृष्णा
जमा करती विध्वंसक हथियार
फैलाती नफरत और घृणा
सब कोई कहता खुद को सयाने
मगर विश्व खड़ा दिखता युद्ध के मुहाने।।