रूह में बसती नज़्में
रूह में बसती नज़्में
आज कवि कुछ परेशान था.....
एक एक पाठक से किसी बात पर भिड़ंत हो गयी थी.....
पाठक ने फिर कवी को अनफॉलो करने की धमकी दे दी थी....
कवि रंजीदा और संजीदा हो गया...
इंटरनेट के ज़माने में अपने वजूद को तरसती किताबों को देख कवी पहले ही ग़मज़दा था....
फिर कुकुरमुत्तों की तरह उग आयी
ऑनलाइन कवियों की भीड़!
उसके ऊपर एक पाठक की उसे अनफॉलो करने की धमकी!!!
अपने उस पाठक को खोने की डर से कवी ख़ौफ़ज़दा हो गया....
लेकिन वह कवी था जिसे पाठक की मिन्नतें करना गवारा नही था...
कवि इतिहास के पन्नों में खो गया
उन पन्नों में ज़ब्त शुदा नज़्में देख कवि हैरान हूँआ...
उसे लफ़्ज़ों की ताकत का अहसास हुआ
उसने लिखना शुरू किया
हमे चाहिए आज़ादी.....
भुखमरी से आज़ादी…..
उसने कुछ आगे और लिखना चाहा
लेकिन उसकी कलम रुक गयी...
क्योंकि इसको गाने वालों को विद्रोही कहा गया था.....
उन्हें सलाखों के पीछे डाला गया था
उनपर बंदिशें और तोहमत लगाई गयीं थी
हम भी देखेंगे कहते हुए कवि ने कुछ और ज़ब्त शुदा नज्में देखी...
उसे नज़्मों की ताक़त का अहसास हुआ.....
क्योंकि इतिहास में कुछ नज़्में अवाम की आवाज़ बन गयी थी....
जो हुक्मरानों से जब तब सवाल करती रही है...
लेकिन कौन से हुक्मरानों को सवाल पसंद आते है?
फिर नज़्मों को ज़ब्त करने का सिलसिला चल पड़ता है....
लेकिन हुक़्मरान भूल जाते है की वे
नज़्मे तो लफ्जों का चोला पहनी रूह होती है
ज़ब्त होने के बावजूद इंसानी यादों में और जज्बातों में जिन्दा रहती है
इसलिए की वे रूह में बसती है और रु ब रु बातें करती है....
कवि को अपने लफ़्ज़ों पर नाज़ हुआ....
वह बेख़ौफ़ होकर फिर कविताएँ लिखने लगा....
क्योंकि कुछ नज़्मों को और उन कवियों को सदियों तक पढ़ा जाता है.....
जीती जागती रूह वाला कोई पाठक
कैसे उन्हें अनफॉलो कर सकता है भला?
