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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Romance Fantasy

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Romance Fantasy

रुख़ मोड़ गई

रुख़ मोड़ गई

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रुख़ मोड़ गई चाहत का वो मेरी यूं

हमे भी वही लगता था के 

 मगर हमारा दिल को तोड़ गई वो यूं  

इस कदर चाहा हमने उसे इस कदर चाहा था के 


फिर भी हमसे ही मुंह मोड़ गई वो यूं  

जिंदा तो है मगर जीते जीते मार गई वो यूं  

कहती थी जो कभी हमसे 

मैं जिंदगी भर साथ नहीं छोडूंगी 


मगर किसी और की बांहों में जाके वो तड़पाती रही

 हमें उसने तो बीच गलियों में छोड़ गई वो यूं  


मेरी वो बेरूखी के रुख मोड़ कर रुक गई हैं 

तुम्हे देख कर मेरी ये सासे भी रुक सी गई वो यूं


लट को अपने यूं सुलझाई तुमने ऐसे की

तुम्हे देख कर मेरी ये सासे ही उठ गई वो यूं  


आज फिर से तुम्हे देख कर 

मेरी सारी ख्वाहिश लौट आई वो यूं

तेरा ये झुमका भी ऐसा खनका की 

तुम्हे देख कर मेरी बिखरी रात सुलझ गई वो यूं


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