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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Romance Fantasy

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Romance Fantasy

मेरी ये मायूसी

मेरी ये मायूसी

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पता है यूं तो मैं अक्सर ही मुस्कुराता रहता हूं,

खिलती हंसी के पीछे सब कुछ छुपाए रखता हूं


कोई भांप न ले मेरे चेहरे से मेरी ये मायूसी को

मैं अक्सर अपनी आंखों को अपनों से छिपाए रहता हूं,


होंठों की मुस्कुराहट के पीछे कैद रखता हूं

दास्तान दर्द की जो मेरे हालात जो हैं जैसे है,


बस दिल में दफनाए रखता हूं ....फिर भी..

मैं अक्सर बीते वक्त को बगल में रख के 


चल रहे दौर के कदमों से कदम मिलाए रहती हूं,

ज्यादा सच , थोड़ा झूठ बोलकर अपने मन को बहलाए रखता हूं...


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