रसोई में धूमधाम
रसोई में धूमधाम
क्या सुनाऊं दास्तां,
तुमको पिछले साल की।
हालत खस्ता हो गई,
प्यारे मिट्ठनलाल की।
जय कन्हैया लाल की,
जय कन्हैया लाल की।
एक दिन मन में मेरे,
लड्डू खाने की आ रही थी।
लेकिन मेरी मम्मी,
लड्डू नहीं बना रही थी।
रविवार का दिन था,
झट से देखा मौका।
मम्मी गई खेत में,
पट से मारा चौका।
मेरे मजे हो गए,
बात हुई कमाल की।
जय कन्हैया लाल की,
जय कन्हैया लाल की।
घर पर कोई था नहीं,
रसोई पड़ी थी खाली।
झटपट जा चूल्हे पर बैठा,
ऊपर पड़ गई थाली।
खांड रखी थी पीपे में,
टांग पर रखा गूंद।
घी डाल कढ़ाई में,
झटपट लिया भून।
चारों तरफ फैल गई,
महक बड़े कमाल की।
जय कन्हैया लाल की,
जय कन्हैया लाल की।
माल सब तैयार हुआ,
मूँछों के लगाई अंटी।
इतने में दरवाजे की,
प्यारे बज गई घंटी।
गेट खोल देखा तो,
बाहर खड़ी थी माई।
अंदर आपके मुसल से,
जमकर करी ठुकाई,
ऐसी तैसी हो गई।
प्यारे मिट्ठनलाल की।
जय कन्हैया लाल की,
जय कन्हैया लाल की।
