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रोटी और भूख

रोटी और भूख

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महलों से निकले कचरों में

वह अपने लिए कुछ ढूढ़ रहा है,

होठों पे सुखी जीभ फिराकर

उदर को अपने हाथों से छू रहा है,

बुझी आँखों में आस लिए

वह कचरो में कुछ टटोल रहा है,

सब्र का दामन छूट गया

जो भी हाथ आया वो लूट गया,

उस भूखे पर झपटे कुत्ते भूखे

वो रोटी उसके हाथों से छूट गया।


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