रोज़ की तरह
रोज़ की तरह
रोज़ की तरह आज भी "माँ"
कबूतरों को दाना देने छत
पर आई थी
पर आज का दृश्य कुछ अलग था
एक तरफ कबूतरों का झुण्ड था
तो दूसरे तरफ चार-पाँच कौवे
बैठे थे घात लगाए,
जैसे ही कबूतरों का झुण्ड दाना खाने
आगे बढ़ता है, वैसे हीं
कौवे उन पर आक्रमण कर देते हैं
कोई अपनी चोंच से कबूतरों का
पँख नोचता है
तो कोई कबूतरों को घायल करता है,
कौवे चाहते तो कबूतरों के साथ
मिल-जुल कर दाना खा सकते थे
पर उन्हें एकाधिकार चाहिए था
सो उन्होंने आक्रमण किया,
ये जलन,ईर्ष्या ,द्वेष हर जगह है
पशु-पक्षियों में है तो उसकी एक
ख़ास वजह है कि उनमें
सोचने-समझने की क्षमता नहीं होती
पर मनुष्यों में ये बेवजह होती है।