रोज घबराया
रोज घबराया


रोज घबरा
फिर तुझे पाया
मुश्किल था रोना
पर तू ने रुलाया
हास्य बना जीवन
पर,
कल्पना ने संभाला
मेरी छोटी सी कल्पना में
तेरा था छाया।
हाय रे !
पीतांबर क्या तूने कर डाला ?
अपने हाथों से
अपार दुख दे डाला !
पर जो भी था अच्छा था
इससे तुमसे जुड़ा रहा .......!
इसलिए आस है
इसलिए खास है
कभी तो उत्साह है
लेकिन ,
फिर भी
जीवन अपने में हास्य है।