ऋण चुकायें
ऋण चुकायें
माता पिता हमारे भगवन
प्रातः उठ करें उन्हें नमन
सदा करें इनका सम्मान
बढे बुद्धि बनें आयुष्मान।
गाय को नित रोटी खिलायें
पशुओं को न कभी सतायें
काम हमारे सदा ये आयें
इसीलिए तो पाले जायें।
चींटियों को नित आटा डालें
पंछियों को नित दाना ड़ालें
कुत्तों को नित रोटी खिलायें
अकेले अकेले ही ना खायें।
पेड़ लगायें प्रकृति बचायें
पानी को ना व्यर्थ बहायें
रखें स्वच्छता घर बाहर
धरा बनेगी साफ सुंदर।
मीठा बोलें सबको लुभायें
सबको देख सदा मुस्कायें
झूंठ छोड़ सच को अपनायें
मानव होने का ऋण चुकायें ।।