रिश्तों की दौलत
रिश्तों की दौलत


अकेला ही इस दुनिया में, जीवन जीने था आया
अनगिनत रिश्तों को मैंने, आकर यहां अपनाया
किसी के संग रोया और, किसी के संग मुस्काया
तोड़ा किसी ने दिल मेरा, किसी का मैंने दुखाया
आँखें मेरी भीग गई, समय जाने का जब आया
जीवन का अंत देखकर, मन ही मन मैं पछताया
करना तो था प्यार, किन्तु नफरत को मैंने पाला
रहते थे जो संग मेरे, उनको ही दिल से निकाला
सबके प्रति बनाकर रखा, मैंने घृणा का ही भाव
अपनों को ही देता गया मैं, ना जाने कितने घाव
तन से हुआ बीमार जब, ये सच समझ में आया
कठिन घड़ी में अपना, रिश्तेदार ही काम आया
मेरे ही जीवन का सच्चा, अनुभव मुझसे पाओ
अपने लौकिक रिश्तों को, दिल से तुम निभाओ
सबके लिए तुम दिल में, प्यार का झरना बहाओ
रिश्तों की इस दौलत को, निरन्तर बढ़ाते जाओ