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Ankita kulshrestha

Tragedy

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Ankita kulshrestha

Tragedy

रिश्तों का मोल

रिश्तों का मोल

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जब पैसा सर चढ़ जाता है

रिश्तों का मोल भुलाता है

ये हर इंसाँ की फितरत है

जो सहता है झुक जाता है


करके खुद सत्तर काम गलत

औरों में ऐब दिखाता है

जिस दीपक तले अँधेरा है

पथ गैरों को समझाता है


है मुर्दों की पहचान अकड़

फिर क्यों कर अकड़ा जाता है

हट्टी कट्टी जिसकी लाठी

वो कुर्सी पर जम जाता है


तुम ज्ञानी चाहे जितने हो

बस ढोंगी पूजा जाता है

है झूठों का बोला-बाला

सच तड़प-तड़प मर जाता है


सत पथ पर नित चलता जाता

हाँ 'श्रेष्ठ' वही कहलाता है।


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