रिश्ते
रिश्ते
1 min
161
रिश्तों के उलझन में
सदा ये दिल क्यूँ फँसता है?
जुबां मीठी बातें कड़वी
दिल को यह बड़ी चुभता है।
जो अपना सा लगा हरदम,
वही चोट क्योंकर देता है?
उलझन यही की कितना बदलूँ
मैं खुद को की
शिकायतों का सिलसिला न रहे।
ये शिकायतों का सिलसिला
अंदर ही अंदर दिल टूटता है।
न रिश्तों में बेइमानी ,
न बातों में मक्कारी,
फिर भी मेरे हिस्से में
इल्जाम सारी
ये वफादारी पर शक मेरे
जेहन में शूल बनकर चुभता है।
रब से बस यही इल्तिजा मेरी
न कोई रिश्ता जुड़े मुझसे
ये रिश्ते जुड़ते मुझसे,
मेरा वजूद टूटता और बिखरता है।