रिक्शे की सवारी
रिक्शे की सवारी
चार पहिया की गाड़ी मेरी
सुबह से शाम हो जाती है
चार बैठे पीछे और एक आगे
समय से मंजिल पहुंचाती है।
निकल पड़ता हूं इसे लेकर मैं
गलियों बाहर चौराहों पर
किसी को हूं आवाज लगाता
तो किसी की देखूं निगाहों पर।
कम पैसों की सवारी है मेरी
निःसंकोच होकर बैठ जाती हैं
जब कभी हो जाए जो देरी
बहुत कच कच लगाती है।
सर्दी गर्मी और बरसात में
रहती बस यही मेरे साथ में
धीरे गति से इसे चलाकर
मेहनत का फल पाता हाथ में।
रोजी रोटी व मान सम्मान
अपनी इसी से कमाता हूं मैं
ना कोई बेईमानी मेरे अंदर हैं
ना कोई छुरी दिखाता हूं मैं।
भीड़ भरे ये चौराहे शहरों के
किनारा मिलें मुझे पास नहरों के
बैठना कभी तुम मेरी गाड़ी में
आरामदायक सस्ती सवारी में।