" रहे ना धरती प्यासी "
" रहे ना धरती प्यासी "
प्यासी धरती पर पडे, पानी की बौछार
हरा रहे मन दूब सा, करे नया श्रृंगार
करे नया श्रृंगार ,धरा पर रंगत लाता
भरे उमंग के भाव,खुशी के पंख लगाता
उपजे अन्न अपार, हटे जगत की उदासी
खूब बने बरसात, रहे ना धरती प्यासी।
