रेत की छत
रेत की छत
रेत की छत है और पानी की दीवारें हैं।
कितने मजबूत बने आशियां हमारे हैं।
एक गुमशुदगी की वीरानी है घेरे हमको,
हम हैं महफूज कि इतने बड़े सहारे हैं।
पीठ पर बेंत के निशां हैं, पांव में छाले,
जिस्म तनता है और घाव इतने सारे हैं।
रोशनी के इस किले पर हमें है नाज बहुत,
जिसकी दीवार में पड़ने लगी दरारें हैं।
दिल की बस्ती में ठहरते नहीं हैं दो दिन भी,
ख्वाब की शक्ल में कुछ घूमते बनजारे हैं।
रेत की छत है और पानी की दीवारें हैं
कितने मजबूत बने आशियां हमारे हैं।