रौशनी चली गई
रौशनी चली गई
उम्र भर भटका दर-बदर यूँ ही
हँस कर सितम को भुलाता रहा
किसी ना किसी से,यूँ ही जिंदगी में
व्यर्थ की ही आशा लगाता रहा
एक को खो कर एक संताप से-
फिर एक संताप को मिटता रहा
मुरझाए हुए, आंसूओं की कली पे
उम्मीद का भौंरा गुनगुनाता रहा
अब दाँत भी चले गए उम्र के प्रभाव से
सितम औ संताप कि कहासुनी चली गई
बुढ़ापे में अभी तो अंधेरा हुआ है
क्या सितम है! आँखों कि रौशनी चली गई!!
