STORYMIRROR

Sandeep kumar Tiwari

Tragedy Others

2  

Sandeep kumar Tiwari

Tragedy Others

रौशनी चली गई

रौशनी चली गई

1 min
169

उम्र भर भटका दर-बदर यूँ ही 

हँस कर सितम को भुलाता रहा 

किसी ना किसी से,यूँ ही जिंदगी में 

व्यर्थ की ही आशा लगाता रहा


एक को खो कर एक संताप से- 

फिर एक संताप को मिटता रहा 

मुरझाए हुए, आंसूओं की कली पे 

उम्मीद का भौंरा गुनगुनाता रहा


अब दाँत भी चले गए उम्र के प्रभाव से

सितम औ संताप कि कहासुनी चली गई

बुढ़ापे में अभी तो अंधेरा हुआ है 

क्या सितम है! आँखों कि रौशनी चली गई!!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy