रावण तिल तिल मरता है
रावण तिल तिल मरता है
इक समय था,
जब रावण रमता,
जग -जग फिरता था।
रावण राज से इंंद्र आसन,
तक हिलता था।
रावण डर से,
नौ ग्रह उसकी,
परिक्रमा करते रहते थे।
काल क्रम के ,
परिवर्तन से,
अंबर तक डरते थे।
रामनवमी से ही तो,
काल-कमल महकते थे।
नयी बेला ने काल मुख,
मोड़ दिया।
रामावतार से,
रावण सिंहासन तक डोल गया।
राम पराक्रम सुन -सुन,
रावण तिल- तिल हो मरता है।
खर दूषण खत्म हुए,
सूपर्णखा सुनाती आती है।
रावण दंभ तू किसका करता है,
शिव धनुष तक टूट गया,
तू किसके बल पर जीता है।
राम तो घट -घट रमता है,
रावण सिंहासन तक डोल गया।
रावण तिल- तिल हो मरता है।
विभिषण कहता बार - बार,
रावण घोर अपराध से,
लंकिनी वीरान हुई,
धीरे-धीरे से,
गिद्ध - गीदड़ से ,
लंका आबाद हुई।
जाने सीता को चुरा
कौन सा कमाल किया ?
सीता को छिपा अशोक वाटिका में,
हनुमान को यूँ ही न्यौता दिया।
आज नहीं तो कल,
काल मौत नाचेगा-
राम बडा़ या रावण,
काल कल बतायेगा
अब भी समय है,
भइया लंका बचा लो तुम।
तुम नहीं समझते,
क्यों भ्रम में रहते हो,
राम पराक्रम देख,
तेरा सिंहासन तक डोल गया।
करनी अपनी देख देख,
अब,
रावण तिल- तिल हो मरता है।
