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Dr Rajiv Sikroria

Abstract Classics Fantasy Children Romance Inspirational

4.8  

Dr Rajiv Sikroria

Abstract Classics Fantasy Children Romance Inspirational

बादल

बादल

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325


गगन से बादलों का

हर नाता पुराना है,

पर बादल तो

धरती का, 

दिवाना है।

हरियाली देख धरती की,

मचलता पल पल,

फिरता है।

कहो कैसे पहुँचू़ं मैं ?

धरती के आँचल में,

गगन अब बता मुझको,

मेरा मन मचलता है।

बनूँ मैं बूंद,

या फिर ओस।

अब बता मुझको रे ।

गगन से बादलों का,

हर नाता पुराना है।

पर बादल तो ,

धरती का दिवाना है।

क्यूँ लटकूँ मैं?

उड़ आवारा बन,

आवारा बन अंबर में,

मुझे धरती बुलाती-

हरियाली लुभाती,

हर पल बुलाती।

मुझे छोडो, 

मैं उड़, बूँद बन,

धरती पर जाऊँगा।

अभी धरती बुलाती है।

मेरा तेरा नाता पुराना है,

गगन को रोता देख,

बादल यूँ कुछ बोला-

मै फिर लौट आऊँगा,

बादल बन, कुछ पल में-

तेरे नीलांबर में। 

उडूँगा खेलूँगा,

हवा संग, दूर जाऊँगा।

बूंद बन बापस, 

फिर आऊँगा।

गगन से बादलों का,

हर नाता पुराना है।

पर बादल तो,

धरती का दिवाना है।




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