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Dr Rajiv Sikroria

Abstract Comedy

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Dr Rajiv Sikroria

Abstract Comedy

बादल

बादल

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गगन से बादलों का

हर नाता पुराना है,

पर बादल तो

धरती का, 

दिवाना है।

हरियाली देख धरती की,

मचलता पल पल,

फिरता है।

कहो कैसे पहुँचू़ं मैं ?

धरती के आँचल में,

गगन अब बता मुझको,

मेरा मन मचलता है।

बनूँ मैं बूंद,

या फिर ओस।

अब बता मुझको रे ।

गगन से बादलों का,

हर नाता पुराना है।

पर बादल तो ,

धरती का दिवाना है।

क्यूँ लटकूँ मैं?

उड़ आवारा बन,

आवारा बन अंबर में,

मुझे धरती बुलाती-

हरियाली लुभाती,

हर पल बुलाती।

मुझे छोडो, 

मैं उड़, बूँद बन,

धरती पर जाऊँगा।

अभी धरती बुलाती है।

मेरा तेरा नाता पुराना है,

गगन को रोता देख,

बादल यूँ कुछ बोला-

मै फिर लौट आऊँगा,

बादल बन, कुछ पल में-

तेरे नीलांबर में। 

उडूँगा खेलूँगा,

हवा संग, दूर जाऊँगा।

बूंद बन बापस, 

फिर आऊँगा।

गगन से बादलों का,

हर नाता पुराना है।

पर बादल तो,

धरती का दिवाना है।




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