रावण-रानी मंदोदरी संवाद
रावण-रानी मंदोदरी संवाद
त्रिलोकी की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी
जो दशानन की अर्धांगनी बनी
पाँच सतियों में नाम है जिसका
जिसे रामायण सर्वगुण संपन्न स्त्री कही।।
राम-सीता के विछोह से दुःखी है रहती
रावण से जो कई बार लड़ी
नर नही नारायण राम है
हमेशा सीता को उनकी शक्ति कही।।
बल-बुद्धि से जो जीता जाए
वैर उसी के साथ सही
अंतर जुगनू-सूर्य सा राम-रावण में
वही लंकेश को वो हर बार कही।।
मधु-कैटभ दो दैत्य को मारे
जिन्हें वराह-नृसिंह ये दुनियां कही
हिरण्याक्ष-हरिण्यकशिपु को जो संहार
उन्हें वामन-परशुराम भी कहते सभी।।
जिनके हाथ में काल-कर्म-जीव
विरोध उनसे न ठीक कभी
जानकी उनको सौंप के स्वामी
क्यूं करते न उनसे क्षमा-विनती अभी।।
वन जाने की उम्र हमारी
सब पुत्र को सौंप कर चलो अभी
दीन-दुखियों पर दया जो करते
उनकी शरण में चलते आज-अभी।।
दोनों भजन करेंगे उस ईश्वर का
सारी दुनियां जिसने रची
श्रेष्ठ मुनीजन जिनकी साधना करते
वैरागी होकर चलो वहीं।।
वर्णन करूं क्या उनके दूत का
न राक्षसों में कोई उनसा बली
राक्षस स्त्रियों के गर्भ गिर जाते
जो याद आ जाते उन्हें हनुमान कभी।।
हाथ मैं जोड़ चरण हूं पड़ती
बात को समझों इस अभागिन की
मंत्री को बुलाओं आज-अभी तुम
श्री राम को दे दो उनकी सखी।।
रक्षा करें न शिव, ब्रह्मा, विष्णु
श्री राम की शक्ति सीता रही
सर्पों के समान है बाण, तीर-कमान सब
समक्ष जिनके राक्षस मेंढक समान सभी।।
करता हंसी-ठिठोले रावण बोला
हमेशा मुर्ख -डरपोक कहलाती स्त्री सभी
कच्चा होता ह्रदय उनका
इसलिए विश्वास न होता उसपे कभी।।
जीवन निर्वाह करेंगे राक्षस सारे
खा वानरों की सेना वो सभी
निडर-निर्भीक रहो रानी मंदोदरी
खुद, रावण भी किसी से कम नहीं।।
यक्ष-देव-दानव मैने सारे जीते
क्या नर-वानर की औकात रही
बलशाली के सब रक्षक होते
कोई न कमज़ोर-गरीब को पूछे कहीं।।
सहमी-डरी सी मंदोदरी बैठी
विधाता ने कैसी माया रची
सुनने को तैयार न प्रियतम
मैने नीति संगत जितनी बात कही।।