रावण दहन
रावण दहन
दशहरा फिर गुजर गया,
उत्साह त्योहार का बिखर गया।
रावण पुतले का दहन कर ,
आतुर मन फिर ठहर गया।।
निकम्मी परंपरा को फिर ढो लिए,
रामपने के गुमान में दो दिन जी लिए।
कल फिर दशाएं बदलेंगी,
रावणपने की तूती फिर सर चढ़ बोलेगी।।
हम अत्याधुनिक युग में रहते हैं,
पर भेड़चाल में चलते हैं।
इस तरह अब तक काम चलाएंगे,
असली रावण को कब जलाएंगे।।
दूर खड़ा रावण ताने कस रहा,
हमारी बेबसी पर वो हंस रहा।
क्योंकि हम उसे मार सकते नहीं,
उससे दूर भाग सकते भी नहीं।।
उसे जलाना तो मात्र एक बहाना है,
वास्तव में तो बस.! खुद को तसल्ली देना है।
अपने अंदर के रावण को हम जिस दिन जलाएंगे,
उसके पुतला दहन में हम उसी दिन सफल हो जाएंगे।।