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रकमिश सुल्तानपुरी

Romance

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रकमिश सुल्तानपुरी

Romance

रातों में के अंधेरों में

रातों में के अंधेरों में

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रातों मन के

अंधेरों में

तस्वीरें चलती रहती हैं ,

शामों से ख़ामोशी ठहरी

रहती है मेरे घर

फ़ैली रहती है रातों भर

तन्हाई की चादर ।

सुबह सबेरे

मन को घेरे

परछायीं बढ़ती रहती है ।

रातों मन के अंधेरों में,,,,,,,,,,

सन्देहों की जाल बिछाती

जाती याद सलोनी

सोने देती मुझको कैसे

स्वप्नों की अनहोनी

चक्षु झीलों से

निकल दुखों की

सरिताएँ बहती रहती है ।

रातों मन के अंधेरों में ,,,,,

धूमिल आहट को धोखे मे

रखतीं रातें काली ।

सुबह सजाये सूरज लाता

भावुकता की थाली ।

मन के बागों

में ख़ुशबू भर

पुरवाई बहती रहती है ।

रातों मन के अंधेरों में ,,,

 


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