रातों में के अंधेरों में
रातों में के अंधेरों में
रातों मन के
अंधेरों में
तस्वीरें चलती रहती हैं ,
शामों से ख़ामोशी ठहरी
रहती है मेरे घर
फ़ैली रहती है रातों भर
तन्हाई की चादर ।
सुबह सबेरे
मन को घेरे
परछायीं बढ़ती रहती है ।
रातों मन के अंधेरों में,,,,,,,,,,
सन्देहों की जाल बिछाती
जाती याद सलोनी
सोने देती मुझको कैसे
स्वप्नों की अनहोनी
चक्षु झीलों से
निकल दुखों की
सरिताएँ बहती रहती है ।
रातों मन के अंधेरों में ,,,,,
धूमिल आहट को धोखे मे
रखतीं रातें काली ।
सुबह सजाये सूरज लाता
भावुकता की थाली ।
मन के बागों
में ख़ुशबू भर
पुरवाई बहती रहती है ।
रातों मन के अंधेरों में ,,,

