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रकमिश सुल्तानपुरी

Others

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रकमिश सुल्तानपुरी

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आँगन में (ग़ज़ल)

आँगन में (ग़ज़ल)

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मिलन का आ गया अपने पुनः त्योहार आँगन में । 

मिटा नफ़रत गले मिलकर करेंगें प्यार आँगन में । 


बड़ा  प्यारा निराला  है हमारा पर्व होली का । 

अमीरी का गरीबी का न हो व्यवहार आँगन में ।  


न कुंठित मन, मगन उर में कहीं दुर्भावना पनपे ।

भरेंगें रंग खुशियों का सभी घर द्वार आँगन में । 


निराशा तम के बंधन सँग बुराई छोड़ तुम आना । 

बसायेंगे  मुहब्बत  का नया संसार आँगन में । 


न दुख आये न चिंता हो न भूखा हो न प्यासा हो ।

न हो शंशय, न भावों का करें व्यापार आँगन में । 


न काले का, न गोरे का, सभी वर्णो के संगम का । 

मिलन सबरंग है होली यक़ीनन यार आँगन में । 


खिले मुख हर्ष से 'रकमिश' बढ़ाये नेह पावनता । 

अबीरों की ,ग़ुलालों की सजी बौछार आँगन में ।  



               ✍रकमिश सुल्तानपुरी 


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