STORYMIRROR

रकमिश सुल्तानपुरी

Abstract

4  

रकमिश सुल्तानपुरी

Abstract

मेरे दिल से अब गुजरे

मेरे दिल से अब गुजरे

1 min
403

वही आसान सी रातें बड़ी मुश्किल से अब गुज़रे

कोई तुझसा हसीं चेहरा जो मेरे दिल से अब गुज़रे


मुझे इक खौफ़ सा रहता है दरिया का यहाँ हरदम

भले किश्ती मुहब्बत की किसी साहिल से अब गुज़रे


असर करता है दिल तक वो तेरी आवाज़ का जादू

कभी आवाज़ जब तेरी भरी महफ़िल से अब गुज़रे


तड़पकर  यार मिलने की तमन्नाएँ लिए मसलन

तेरी गलियों से दीवाने किसी ज़ाहिल से अब गुज़रे


कि जिनके हक़ में न आया मुहब्बत का तेरे जादू

लिये ख़ंजर पुराने वो किसी क़ातिल से अब गुजरे


हजारों लोग घायल थे तेरी दिलकश अदाओं पर

मुहब्बत में जफ़ा खाये वही ग़ाफ़िल से अब गुजरे


ख़ुदा ऐसी इनायत कर वफ़ासत पर चलें रकमिश

हमेशा ही क़दम मेरे सही मंजिल से अब गुज़रे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract