दिलों के लफ्ज
दिलों के लफ्ज
जन्म -जन्म सनम तेरी ये बन्दग़ी क़ुबूल है
मिले जो प्यार आपका तो मयकशी क़ुबूल है
वफ़ा खफ़ा -खफ़ा रही मग़र वफ़ा- वफ़ा रही
जो आदतों सी बन गयी वो आशिक़ी क़ुबूल है
है प्यार का मुआमला कुबूल तो जरा मुझे
मिलो कहीं मग़र मिलो ये हाज़िरी क़ुबूल है
ठहर - ठहर , रुकी- रुकी निहारती रही नजऱ
ग़मों की बेबसी रही कि बेरुख़ी क़ुबूल है
वो आदतन ज़ुबान इश्क़ की लगा है बोलने
मग़र ज़नाब की हमें वो शातिरी क़ुबूल है
न देख वज़्न क़ाफ़िया बह्र -वह्र ग़लत -सलत
दिलों के लफ्ज़ बोलती वो शाइरी क़ुबूल है
कि झूठ की वो दोस्ती क़ुबूल है नहीं मग़र
चुनौतियों भरी वो यार दुश्मनी क़ुबूल है।