STORYMIRROR

रकमिश सुल्तानपुरी

Abstract

4  

रकमिश सुल्तानपुरी

Abstract

नवगीत-दर्द सारी रात जागा

नवगीत-दर्द सारी रात जागा

1 min
23.1K

सो गई

भूखी थकाने

दर्द सारी रात जागा


खेत खलिहानों से

लौटी

कँपकपाती बदनसीबी

छप्परों में

जा सिसकती


ओढ़ रजनी को गरीबी

भूख ले

आयी कटोरे

में भरे पर्याप्त आंशू

मौन चुप्पी

तोड़ता है


ले नया करवट अभागा

छोड़ जाती

शाम निशदिन

एक मुठ्ठी भर उदासी

घूँट जाती हर

खुशी नित


निर्धनों की रात प्यासी 

नित्य आशाएँ

बिहँस कर

दे रहीं उनको छलावा

कर्म से

लड़ते रहे पर

भाग्य में है भाग्य त्यागा।


कीमती

परियोजनाएँ

हो गयी लँगड़ी निगोड़ी

आमजनता

फांकती है

बेबसी की धूल थोड़ी।


कर्म के

बिस्तर पे निशदिन

ले रहा दुर्भाग्य करवट

टूटता

रिश्तों का देखो

नेह का वह एक धागा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract