STORYMIRROR

Manju lata Tripathi

Abstract

4  

Manju lata Tripathi

Abstract

बारिश की बूँदें ज़मीन पर

बारिश की बूँदें ज़मीन पर

2 mins
415

बारिश की बूँदें ज़मीन पर ऐसे गिर रही,

जैसे मोती आसमान से,

बिजली कड़क रही है,

जैसे कही प्यार प्यार मिल जाने को हैं 


 पत्तियों पर धूल जम गई थी,

कहीं आँधियों में कहीं गम थी 

वो बारिश की बूँद जो अपने साथ

खुशियां लेकर आयी थी,


धूल को हटा देने के बाद

आज वो फिर मुस्कुराने लगी 

वो फूल जो हसना भूल गए थे,

वो बारिश की बूँद जो अपने साथ

वो ज़िन्दगी लेकर आयी है।


जिससे फूलो ने मुस्कुराना

महकना सीख लिया है

बारिश की बूंदें।


वो जो धुल चारो तरफ जमी हुई थी

जो इंतज़ार कर रही थी अपने हमसफ़र का 

बारिश की बूंदे जैसे ही ज़मीन पर गिरी 

धुल को भी लगा जैसे उसे

वो मिल गया जिसे पाने के बाद

उसे कुछ नहीं चाहिए था 


वो जो हवा चारो तरफ ऐसे ही बाह रही थी, 

न उसका कोई ठिकाना था, न कोई अफसाना 

लेकिन जैसे ही बारिश की बूंदे गिरने को हुई,

तो हवा को लगा जैसे उसे कोई तो

उसे ऐसा मिला जो उसका हमसफ़र बना 

उसे गले लगा सकता है

गले लगाके साथ चल सकता है।


ये हसीन बादियाँ ये महकते हुए फूल

ये लहलहाते हुए पत्तियां, ये महकते हुई मिट्टी 

ऐसा लगता जैसे सबको आज प्यार हो गया।

ऐसा लगता है जैसे आज सब

फिर से जीने को चाहते है। 


बारिश की बूंदे ज़मीन पर ऐसे गिर रही है

जैसे मोती आसमान से,

बिजली कड़क रही है

जैसे कहीं प्यार हो जाने को है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract