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Kusum Joshi

Abstract

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Kusum Joshi

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शांतिदूत

शांतिदूत

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शान्ति दूत बन चले विधाता,

तिहूँ लोक भूत भविष्य के ज्ञाता,

समस्त सृष्टि उनके वश में है,

काल चक्र उनके वश में है,


उनकी इच्छा से जीवन का,

कण कण सब गतिमान है,

मगर कहां गिरिधारी को,

इस शक्ति का अभिमान है,


छोटे बनकर हाथ जोड़,

सृष्टि के स्वामी आज चले,

एक अवसर देने फिर जीवन को,

हस्तिनापुर की ओर चले,


रण से पूर्व सभी कोशिश ,

शांति की आवश्यक हैं,

एक बार समर प्रारम्भ हुआ तो,

गिनने को बस मस्तक हैं,


इसी सोच में हाथ जोड़,

दुर्योधन के सम्मुख खड़े हुए,

जिनके सम्मुख नभ नतमस्तक,

नतमस्तक वो आज हुए,


समझाते थे दुर्योधन को ,

अनुनय विनय जताते थे,

युद्ध का परिणाम क्या होगा,

ये भी उसे बताते थे,


लहू गिरेगा रण भूमि में,

ना तेरा ना मेरा होगा,

सब शव निष्प्राण पड़े होंगे,

क्या तेरा क्या मेरा होगा,


जो एक दूजे को मारेंगे,

वो तेरे मेरे अपने होंगे,

हर शव के साथ सुनो भ्राता,

कितने ही सपने टूटेंगे,


कुछ भविष्य का ध्यान करो,

भ्राता ना अब अभिमान करो,

समय अभी भी पास तुम्हारे,

रण रोको कुछ परित्राण करो,


मैं पास तुम्हारे आया हूँ,

शांति संदेश एक लाया हूँ,

पांडवों की ओर से,

प्रस्ताव सुनाने आया हूँ,


ज़िद छोड़ो भ्राता युद्ध समर की,

वार्ता से बात सुलझ जाए,

एक प्रयत्न तुम भी कर लो,

जग इस विध्वंस से बच जाए,


ना देना चाहा महल यदि तुम,

खुशी से इसको रख लेना,

हस्तिनापुर पर शासन भ्राता,

शान्ति से तुम ही कर लेना,


पांडव फिर इस राजमहल में,

अधिकार ना कोई जताएंगे,

वो इंद्रप्रस्थ में ही अपना,

जीवन खुशी से बिताएंगे,


बस एक हमारी विनती है कि,

पांच गांव हमको दे दो,

इतना है अधिकार हमारा,

भ्राता बस इतना कह दो,


पर दुर्योधन की बुद्धि को,

अंधकार ने घेरा था,

उसके विवेक बुद्धि पर उस पल,

अहंकार का डेरा था,


उसने ना बात कोई,

बस युद्ध में अड़ जाता था,

दुर्योधन प्रभु के समक्ष खड़ा हो,

अपने काल को आवाज़ लगाता था,


अथक प्रयासों पर भी उसने ,

ज़िद ना अपनी छोड़ी थी,

शांतिवार्ता की सब आशा,

दुर्योधन ने तोड़ी थी,


अंहकार के वश में उसने,

माधव को दुत्कार दिया,

क्या अभागा दुर्योधन कि,

ईश्वर का तिरस्कार किया,


जब सभी प्रयत्न निष्फल हो गए,

तब कान्हा ने चेताया था,

इस युद्ध के परिणाम हेतु,

दुर्योधन को जिम्मेदार बताया था,


अंत युद्ध का भीषण होगा,

दुर्योधन मनन कर लो,

राज्य बचेगा ना परिजन,

अब चाहे जो भी जतन कर लो,


एक अवसर तुमको मिला शांति का,

तुमने उसको खोया है,

आज तुम्हारे अहंकार में,

भविष्य तुम्हारा रोया है,


मैं जा रहा हूँ अब सीधे,

रण भूमि में मिलना होगा,

शांति प्रस्ताव ठुकराने का,

फल तुमको ही भोगना होगा,


तुम्हारे छद्म अभिमान में कितने,

निर्दोष भी मारे जाएंगे,

उस हर उखड़ती श्वास आस के,

मोल कहां लग पाएंगे,


असफल हो गई शांतिवार्ता,

माधव के मन ग्लानि थी,

वो जानते थे भविष्य सभी का,

पर एक जिम्मेदारी निभानी थी,


प्रत्येक युद्ध के पूर्व शांति का,

प्रयास सदा आवश्यक है,

शांति सबसे बड़ा धर्म है,

युद्ध तो विध्वंसक है

कि युद्ध तो विध्वंसक है।


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