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Ajay Singla

Abstract

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Ajay Singla

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समय

समय

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318


बचपन बीता आई जवानी

आया बुढ़ापा ख़तम कहानी

आखिर में हम सब विलीन है

हम सब तो इसके आधीन है।


ख़ुशी में तो ये सरपट भागे

तुम पीछे ये आगे आगे

तुम कहो हमें चाहिए और है

पर समय पर किसका जोर है।


दुख में काटे न ये कटता

पल तब घंटों सा है लगता

खराब समय जब अपना चलता

मन भी तब टाले न टलता।


समय समय की बात है ये तो

अभी है दिन, अभी रात है ये तो।

सुबह हुई है, शाम भी होगी

कहता है ये रमता जोगी।


बीतें साल, दशक और सदीयां

सुखी रेत, जहाँ कल थी नदियां

कल जहाँ था कोई न रहता

आज वहां है जीवन बहता।


रोज अंतरिक्ष में तारे टूटें

आकाशगंगा आपस में फूटें

रोज नए तारे भी आएं

नयी आकाशगंगा बनाएं।


समय से पहले कुछ न होता

बड़ा कोई ना, ना कोई छोटा 

आज अगर बैठे हो ऊँचे

कल हो सकता कोई न पूछे।


युगों युगों से जीवन है फल रहा

समय का पहिया ऐसे ही चल रहा

त्रेता, सतयुग, कलयुग, द्वापर

ऐसे ही चलता ये चक्र।


समय किसी के हाथ न आया

समय की है अजब ही माया

इसके आगे हर कोई झुकता

समय किसी के लिए न रुकता।


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