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रकमिश सुल्तानपुरी

Others

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रकमिश सुल्तानपुरी

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कूड़ेदान

कूड़ेदान

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जीर्ण वस्त्रों 

में छिपाकर 

हुक़्म पा धनवान का।

लाद ले 

जाती ग़रीबी 

ढेर कूड़ेदान का।


तंग बचपन 

की गली में 

ठोकरों से डगमगाई। 

धूप जब 

तपने लगी तो 

भूख से खुब तड़फड़ाई 

पर रुकी न 

हाथ किस्मत 

का पकड़कर बढ़ गयी वो 

बस्तियों में 

हो गयी गुम 

नाम ले भगवान का। 


स्वप्न में 

आने लगे हैं 

घर बुलाने रोज ढाबे 

वक्त जैसे 

पढ़ रहा हो 

छीनकर उसकी किताबें 

थालियों की 

ही सजावट 

बन गयी अनिवार्य शिक्षा 

कौन सा 

अध्याय उसने 

पढ़ लिया विज्ञान का?


टिमटिमाते 

रात भर 

तारे उभरकर ज्यों गगन में  

शीर्ण वस्त्रों 

के झरोखे 

खिलखिलाते त्यों बदन में 

देखकर 

फुटपाथ पर 

रात ने उसको दुलारा 

नींद पहरा 

दे रही थी

रूप धर इंसान का।


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