किंतु, सखाय, राक्षसी सम है, नृत्य, उसी की, अभिलाषा किंतु, सखाय, राक्षसी सम है, नृत्य, उसी की, अभिलाषा
टिमटिमाते रात भर तारे उभरकर ज्यों गगन में शीर्ण वस्त्रों के झरोखे खिलखिलाते त्यों बदन में... टिमटिमाते रात भर तारे उभरकर ज्यों गगन में शीर्ण वस्त्रों के झरोखे खिल...