रामयण २६ ;राम भरत संवाद
रामयण २६ ;राम भरत संवाद
राम के पास सभी जन पहुंचे
कहें, जो सोचा है हम सब ने
भरत जनक संवाद सुनाया
पूछा क्या है आप के मन में।
राम बोले मुनि आप बड़े हैं
आप और जनक जी निर्णय लें अभी
जो आज्ञा हो शिरोधार्य है
भरत की और, तब देखें सभी।
स्मरण किया रघुनाथ का मन में
कहा, तीर्थों का लाये जल भर के
राजतिलक की पूरी तैयारी
हम सब आये हैं ये कर के।
भरत बोले प्रभु क्या आज्ञा है
राम भारत को हैं समझाएं
पालन करें हम पिता आज्ञा का
तभी दोनों पुरुषार्थ पाएं।
सबको लगी थी बात ये अच्छी
दुखी मन से भरत भी मान गए
राम और भरत का प्रेम अमर है
देखा जिसने, वो सभी जान गए।
भरत कहें एक और मनोरथ
पवित्र धाम ये चित्रकूट जो
इस वन की है शोभा निराली
मन करता दर्शन करने को।
राम कहें ऋषिओं के प्रमुख
अत्रि मुनि कहते हैं जिनको
वन के बारे में तुम्हे बताएं
प्रणाम किया, भरत ने उनको।
अत्रि मुनि ले गए भारत को
कुएं में डाला तीर्थों का जल
भरतकूप उसे नाम दे दिया
आगे वन में सभी चल दिए पैदल।
सुंदर पशु, पक्षी और वृक्ष
भरत सबको देखें बड़े प्यार से
सबके नाम और गुण के बारे में
बताएं अत्रि मुनि जी विस्तार से।
तीर्थ दर्शन किये पांच दिनों में
फिर पहुंचे थे राम समक्ष वो
उधर राम ये सोच रहे थे
आज विदा करदूँ मैं सबको |
बहुत तरह समझाया भरत को
पर उनको संतोष न हुआ
बोले चौदह वर्ष की अवधि
कैसे काटूंगा, करूंगा मैं क्या।
दे दीं अपनी खड़ाऊँ प्रभु ने
भरत ने अपने सिरपर धरलीं
लोग वहां सब दुखी बहुत थे
पर जाने की तैयारी कर ली।
पहुंचे सब अयोध्या वापिस
मन न लगे है राम के बिन
चौदह वर्ष की अवधि बड़ी है
गिनकर कट रहा एक एक दिन।
भरत जी गुरु आशीर्वाद लिया
महूर्त अच्छा एक निकलवाया
विधिपूर्वक सिंहासन पर फिर
चरणपादुका को बैठाया।
भरत जी ने नंदीग्राम में
एक पर्णकुटी बनवाई
मुनि रूप, वल्कल वस्त्र
सिर पर थी एक जटा धराई।
आसन एक कुशा का बनाया
कोई भेद न पाया, उनके मन का
मन कर्म वचन से छोड़े भोग सब
ऋषिओं जैसा आचरण था उनका।
नित्य दिन पूजा पादुकाओं की
आज्ञा ले, राजकर्म सब करते
ह्रदय में सीता राम बसे हैं
याद करें, नेत्रों में जल भरते।