राम का प्रवर्षण पर्वत पर निवास
राम का प्रवर्षण पर्वत पर निवास
जो धीरज धारण के प्रतीक हैं,
और हैं संयम साहस के धाम।
अचल अटल अडिग हैं वह,
और हैं संसार के मूल श्री राम।
जब स्थिती विपरीत हो जाती है
साहस बल भी काम ना आती है।
समय भी छलिया बन जाता है
और कोई काम ना बन पाता है।
ऐसे में मन संभलता नहीं है
कोई भी बात समझता नहीं है।
मनुष्य बहुत दुखी होता है तब
कोई रास्ता नहीं दिखता है जब।
फिर कोई उत्साहित रहे कैसे
लक्ष्य पर ध्यान तब लगे कैसे।
ऐसे ही एक समय में राम ने
बिताया प्रवर्षण को बना धाम।
बारिश के मौसम को देख कर
सीता के ध्यान में मौन रहे राम।
बाली को मार कर उद्धार किया
और सुग्रीव को राजा बना दिया।
तभी काली घटा घन घन छायी
घुमड़ घुमड़ वर्षा ऋतु आई।
जंगल के सारे रास्ते बह गए
नये पौधे घने घास रह गए।
वन में तब चलना कठिन था
सारा जंगल वहाँ छिन्न भिन्न था।
ऐसे समय को विपरीत देख
और देखा ना कोई उपाय एक।
तब राम ने धैर्य से काम लिया
वर्षा थमने तक विश्राम किया।
सीता विरह का वह समय,
कठोर कठिन कैसा विकल था।
रह रह मन डरता था तब,
सीता का ख्याल आता पल पल था।
एक तरफ सीता की चिन्ता शोक
उस पर समय खड़ा रास्ता रोक।
समय ने बहुत सताया तब
नित्य नये डर दिखते थे तब।
पर राम कहाँ मन के बस में
सभी भय को टाल दिया हँस के।
मन को विश्वास से भर कर
राम सोचे क्या होगा यूँ डर कर।
ऐसे क्यों रोता है क्यों पछताता है
समय तो सब दुख खा जाता है।
साधना कब कहाँ व्यर्थ जाती है
समय पर नया अर्थ पाती है।
भय और मोह को हरने वाले,
धैर्य शौर्य जिनके शस्त्र महान।
वह कब डरें मन के डराये,
जो है मन के मालिक बलवान।
साधक साध्य जब एक होते हैं
साधना कर नया बीज बोते हैं।
सींचते हैं उसे अपने तप से
दृढ़ करते निरन्तर जप से।
मन में फिर से आस जगाकर
सीय मिलन की प्यास जगाकर।
राम तो बार बार दोहराते थे
विजय गीत नये नये गाते थे।
विजय रथ पर सवार होते
जयघोष बार बार थे करते।
चलूंगा समय सब साथ लिये
प्रेम की फिर से नई बात लिये।
इस धरा पर सीता साथ लिये
चलूंगा फिर हाथों में हाथ लिये।
मन को उत्साह से अपार भर,
समय बदला बिता वर्षा काल।
कपि दल बुला तब बोले राम,
सीय खोज करो अब तत्काल।।
