राहत
राहत


वक्त का तमाचा पड़ा है गाल पर
बात राहत की कैसे कहते हो।।
सच तो कई सपने टूटे हैं
राहत की बात सब झूठे है।।
बहुत सोच कुनबा यह सजाया
नाम राहत पर सबको दबाया।।
पसीना तेरे लिए धूप में बहाया, याद है
राहत के ना फिर क्यूँ रूला रहा।।
चौड़ी बाजू, तान सीना जीतता पहलवान
राहत की बात से क्यों दूर हो मेरे भगवान।।
चलो मान ली पेश हुई कुछ राहत
बड़े और बड़े हुए
छोटे सड़क पर सोते रह गए
मन में रह गई मन की कुछ चाहत।।
सीधा नियंत्रण पूरी व्यवस्था पर
फिर चोट क्यूँ राहत की आस्था पर।।
सजग हो वीर बनो न कि अधीर बनो
राहत की बात पर बस मत बधिर बनो।।